पूंजीवादी साम्राज्यवाद के इस संकट का विश्लेषण करते हुए लेखक की कौनसी बात आप को सबसे ज्यादा सटीक लगी.
१. देशभक्ति का क्या अर्थ है जमकर खर्च करना.
२. अतिउत्पादन और साम्राज्यवाद या इजारेदारी पूंजीवाद के दौर में पूँजी के बढ़ते अनुत्पादक चरित्र और सट्टेबाज़ प्रवृत्ति के कारण पैदा होने वाला साम्राज्यवादी आर्थिक संकट है, जो हर नए चक्र के साथ और अधिक
३. पूँजी की इतनी प्रचुरता है कि प्राइम व आल्ट ए श्रेणी बाज़ार संतृप्त होने के बाद भी उसके पास भारी मात्र में पूँजी बच जाती है. अब इस पूँजी का संचरित कराना उसके लिए अस्तित्व का प्रश्न होता है.
४. द्वितीय विश्वोत्तर काल में ऋण का एक माल के रूप में विकास हुआ और इसी के साथ विकसित हुआ एक ऋण बाज़ार. वित्तीय पूँजी के विस्तार के साथ यह होना लाजिमी था.
५. पूँजी के बाज़ार पर भी हर बाज़ार की तरह संतृप्त होने का नियम लागू होता है. यहाँ भी लाभ की दर में लगातार गिरावट की प्रवृति होती है.
६. सबसे भारी चोट पड़ी सबप्राइम ऋण लेने वालों को क्योंकि वे परिवर्तनीय ब्याज दर के तहत ऋण प्राप्त करने वाले लोग थे.
७. सबप्राइम संकट अतिउत्पादन और पूँजी की प्रचुरता का ऐसा संकट है जिसका प्रभाव अमेरिका की वास्तविक अर्थव्यवस्था पर ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ने वाला है.
८. कोई ठोस आधार न होने के कारण २००१ में डॉट-कॉम बुलबुला फूटा और इसने २००० के दशक की मंद मंदी का श्रीगणेश कर दिया.
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