कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है
समन्दर पार करके जब मैं आया देखता क्या हूँ
हमारे दो घरों के बीच सन्नाटे का सेहरा है
मकाँ से क्या मुझे लेना मकाँ तुमको मुबारक हो
मगर ये घास वाला रेशमी कालीन मेरा है
--------------------------------BASHIR BADAR
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है
समन्दर पार करके जब मैं आया देखता क्या हूँ
हमारे दो घरों के बीच सन्नाटे का सेहरा है
मकाँ से क्या मुझे लेना मकाँ तुमको मुबारक हो
मगर ये घास वाला रेशमी कालीन मेरा है
--------------------------------BASHIR BADAR
yes i belive in astrology